ज़िंदेगी..in a retro

हस्ता हूँ उन परिंदों के उपर जो पंख फेलाके उड़े  तो बहुत
पर कभी हवा को महेसुस ना कर सके..(1)

उम्र भर की किससे आने जाने मे गयी
ज़िंदेगी गुज़री तो सही दोस्तों
पर ज़िंदा रहने की भागदौड़ मे
पूरी ज़िंदेगी बेजान सी गुज़ार दी..(2)

कभी कुछ पाया तो कभी कुछ खोया
जिबन के पत्थ पर जाने कितनो को अपना बनाया
और अपनो को संभालते संभालते
कहीं अपने आप को खो दिया..(3)

कहानी कुछ इश्स तरह आख़िर मे समझ मे आई
की जिंदेगी कितने खाली पन्नो की एक बंद किताब सी बन गयी.(4)

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