एक छोटी सी कबिता..Not a Poem though

हकीकत को सामना कर पाने के डर से
हम एक सपनो की दुनिया में जीते चले गए
जब हुई आखिर में उस सच से रूबरू 
तोह ना ये सपनो की दुनिया रही
और ना जीने की कोई ख्वाहिश ..(1)

वजह तोह बहुत थी रूठ जाने की इस ज़िंदगी से
फिर भी हम इससे अपना मान कर प्यार बहुत करते गए
मंजिल की तलाश में
हमने हर एक राही को अपना
साथी बनाते गए..
और अपना मानते गए..(2)

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